"अक्षय नवमी में आंवला के पेड़ की पूजा का विशेष महत्व है। रविवार के कारण लोगों में भ्रम है कि इस दिन आंवला का स्पर्श, दान-पुण्य या सेवन नहीं करना चहिए। लेकिन, यह नियम पूरे कार्तिक माह जो व्रतोपवास एवं नियम करते हैं उनके लिये नहीं है। यह नियम आम दिनों (अक्षयनवमी को छोड़कर) के लिये है। भगवान विष्णु को आंवला अत्यंत प्रिय है। अतः कार्तिक मास में उन्हें अवश्य अर्पण करना चाहिये । आंवला की पूजा के बाद आंवला के पेड़ के नीचे भोजन बनाने का महत्व है। इसके बाद ब्राह्मण को बनाए भोजन खिलाकर परिजनों के साथ प्रसाद के रूप में पकवान ग्रहण किया जाता है। अक्षयनवमी जिसे कूष्माण्ड नवमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन कूष्माण्ड (पेठा) में सोना, चांदी, रुपया इत्यादि छुपाकर गुप्त दान करने का विशेष महत्व है। नाम के अनुसार ही यह दान अक्षय होता है। इस दिन आँवला का दान एवं स्वयं खाना भी पुण्यदायक होता है। आंवला के छाँव में बैठकर भोजन करते समय यदि आंवला का पत्ता भोजन में गिरे तो वह अमृत तुल्य होता है। पद्य पुराण के अनुसार, कार्तिक शुक्ल नवमी को आंवले वृक्ष की पूजा, भूरा दान, सौभाग्य द्रव्य का दान और वृक्ष के नीचे भोजन करना चाहिए। ऐसा करने से सूर्य ग्रहण के समय कुरुक्षेत्र में दान के समान फल मिलता है।अक्षय नवमी के दिन किए गए दान-पुण्य का फल अक्षय होता है।
सामान्य दिनों में रविवार और सप्तमी तिथि पर आंवले के सेवन से बचना चाहिए। साथ ही, शुक्रवार और माह की प्रतिपदा तिथि, षष्ठी, नवमी, अमावस्या तिथि और सूर्य के राशि परिवर्तन वाले दिन (संक्रांति) आंवले का सेवन न करें।
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