इस वर्ष भीष्मपंचक का व्रत 11 से 15 नवम्बर 2024 तक होगा। देवप्रबोधिनी एकादशी से यह प्रारम्भ होता है।
विशेष - जब भीष्मपंचक के मध्य किसी तिथि की वृद्धि हो जाये तो एकादशी से प्रारम्भ करके पांच दिन ही स्वीकार किया जाता है। उस स्थिति में भीष्मपंचक की समाप्ति चतुर्दशी को ही होती है। लेकिन जब किसी तिथि का क्षय होता है, तब दशमी से ही प्रारंभ माना जाता है। इस वर्ष यही स्थिति बन रही है।
'भीष्म पंचक' व्रत कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी से आरंभ होता है तथा पूर्णिमा तक चलता है।
1. भीष्म पंचम व्रत में चार द्वार वाला एक मण्डप बनाया जाता है।
2. मंडप को गाय के गोबर से लीप कर मध्य में एक वेदी का निर्माण किया जाता है।
3. वेदी पर तिल रख कर कलश स्थापित किया जाता है।
4. इसके बाद भगवान वासुदेव की पूजा की जाती है।
5. इस व्रत में कार्तिक शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तिथि तक घी के दीपक जलाए जाते हैं।
6. भीष्म पंचक व्रत करने वाले को पांच दिनों तक संयम एवं सात्त्विकता का पालन करते हुए यज्ञादि कर्म करना चाहिए।
7. इस व्रत में गंगा पुत्र भीष्म की तृप्ति के लिए श्राद्ध और तर्पण का भी विधान है।
संक्षिप्त कथा - जब महाभारत युद्ध के बाद पाण्डवों की जीत हो गयी , तब श्रीकृष्ण पाण्डवों को भीष्म पितामह के पास ले गये और उनसे अनुरोध किया कि वह पाण्डवों को ज्ञान प्रदान करें। बाण की शैय्या पर लेटे हुए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतिक्षा कर रहे भीष्म ने कृष्ण के अनुरोध पर कृष्ण सहित पाण्डवों को राजधर्म, वर्णाश्रमधर्म एवं मोक्षधर्म का ज्ञान दिया। भीष्म द्वारा ज्ञान देने का क्रम एकादशी से लेकर पूर्णिमा तिथि यानि पांच दिनों तक चलता रहा। भीष्म ने जब पूरा ज्ञान दे दिया, तब श्रीकृष्ण ने कहा कि "आपने जो पांच दिनों में ज्ञान दिया है, यह पांच दिन आज से अति मंगलकारी हो गये हैं। इन पांच दिनों को भविष्य में 'भीष्म पंचक' के नाम से जाना जाएगा।
इन पांच दिनों में अन्न का त्याग करके फलाहार करना चाहिये। भ्रांतिवश कई लोग इसे पांच एकादशियाँ कहकर संबोधित करते है जो कि गलत है। इसके नियम एकादशी जैसे (अन्न का त्याग एवं फलाहार) होने के कारण ही ऐसी भ्रांति बनी है।