Sunday, 10 November 2024

रविवार को अक्षय नवमी हो तो क्या करें ? क्या आंवला का पूजन कर सकते हैं ?

"अक्षय नवमी में आंवला के पेड़ की पूजा का विशेष महत्व है। रविवार के कारण लोगों में भ्रम है कि इस दिन आंवला का स्पर्श, दान-पुण्य या सेवन नहीं करना चहिए। लेकिन, यह नियम पूरे कार्तिक माह जो व्रतोपवास एवं नियम करते हैं उनके लिये नहीं है। यह नियम आम दिनों (अक्षयनवमी को छोड़कर) के लिये है। भगवान विष्णु को आंवला अत्यंत प्रिय है। अतः कार्तिक मास में उन्हें अवश्य अर्पण करना चाहिये । आंवला की पूजा के बाद आंवला के पेड़ के नीचे भोजन बनाने का महत्व है। इसके बाद ब्राह्मण को बनाए भोजन खिलाकर परिजनों के साथ प्रसाद के रूप में पकवान ग्रहण किया जाता है। अक्षयनवमी जिसे कूष्माण्ड नवमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन कूष्माण्ड (पेठा) में सोना, चांदी, रुपया इत्यादि छुपाकर गुप्त दान करने का विशेष महत्व है। नाम के अनुसार ही यह दान अक्षय होता है। इस दिन आँवला का दान एवं स्वयं खाना भी पुण्यदायक होता है। आंवला के छाँव में बैठकर भोजन करते समय यदि आंवला का पत्ता भोजन में गिरे तो वह अमृत तुल्य होता है।  पद्य पुराण के अनुसार, कार्तिक शुक्ल नवमी को आंवले वृक्ष की पूजा, भूरा दान, सौभाग्य द्रव्य का दान और वृक्ष के नीचे भोजन करना चाहिए। ऐसा करने से सूर्य ग्रहण के समय कुरुक्षेत्र में दान के समान फल मिलता है।अक्षय नवमी के दिन किए गए दान-पुण्य का फल अक्षय होता है। 
सामान्य दिनों में रविवार और सप्तमी तिथि पर आंवले के सेवन से बचना चाहिए। साथ ही, शुक्रवार और माह की प्रतिपदा तिथि, षष्ठी, नवमी, अमावस्या तिथि और सूर्य के राशि परिवर्तन वाले दिन (संक्रांति) आंवले का सेवन न करें। 

Monday, 4 November 2024

भीष्मपंचक व्रत क्या है एवं कैसे करें ?

आचार्य सोहन वेदपाठी , लुधियाना (पंजाब)

इस वर्ष भीष्मपंचक का व्रत 11 से 15 नवम्बर 2024 तक होगा। देवप्रबोधिनी एकादशी से यह प्रारम्भ होता है।

विशेष - जब भीष्मपंचक के मध्य किसी तिथि की वृद्धि हो जाये तो एकादशी से प्रारम्भ करके पांच दिन ही स्वीकार किया जाता है। उस स्थिति में भीष्मपंचक की समाप्ति चतुर्दशी को ही होती है। लेकिन जब किसी तिथि का क्षय होता है, तब दशमी से ही प्रारंभ माना जाता है। इस वर्ष यही स्थिति बन रही है।

'भीष्म पंचक' व्रत कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी से आरंभ होता है तथा पूर्णिमा तक चलता है। 
1. भीष्म पंचम व्रत में चार द्वार वाला एक मण्डप बनाया जाता है। 
2. मंडप को गाय के गोबर से लीप कर मध्य में एक वेदी का निर्माण किया जाता है। 
3. वेदी पर तिल रख कर कलश स्थापित किया जाता है।
4. इसके बाद भगवान वासुदेव की पूजा की जाती है। 
5. इस व्रत में कार्तिक शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तिथि तक घी के दीपक जलाए जाते हैं। 
6. भीष्म पंचक व्रत करने वाले को पांच दिनों तक संयम एवं सात्त्विकता का पालन करते हुए यज्ञादि कर्म करना चाहिए।
7. इस व्रत में गंगा पुत्र भीष्म की तृप्ति के लिए श्राद्ध और तर्पण का भी विधान है।

संक्षिप्त कथा - जब महाभारत युद्ध के बाद पाण्डवों की जीत हो गयी , तब श्रीकृष्ण पाण्डवों को भीष्म पितामह के पास ले गये और उनसे अनुरोध किया कि वह पाण्डवों को ज्ञान प्रदान करें। बाण की शैय्या पर लेटे हुए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतिक्षा कर रहे भीष्म ने कृष्ण के अनुरोध पर कृष्ण सहित पाण्डवों को राजधर्म, वर्णाश्रमधर्म एवं मोक्षधर्म का ज्ञान दिया। भीष्म द्वारा ज्ञान देने का क्रम एकादशी से लेकर पूर्णिमा तिथि यानि पांच दिनों तक चलता रहा। भीष्म ने जब पूरा ज्ञान दे दिया, तब श्रीकृष्ण ने कहा कि "आपने जो पांच दिनों में ज्ञान दिया है, यह पांच दिन आज से अति मंगलकारी हो गये हैं। इन पांच दिनों को भविष्य में 'भीष्म पंचक' के नाम से जाना जाएगा।
इन पांच दिनों में अन्न का त्याग करके फलाहार करना चाहिये। भ्रांतिवश कई लोग इसे पांच एकादशियाँ कहकर संबोधित करते है जो कि गलत है। इसके नियम एकादशी जैसे (अन्न का त्याग एवं फलाहार) होने के कारण ही ऐसी भ्रांति बनी है।