आचार्य सोहन वेदपाठी, ज्योतिषाचार्य, वेदाचार्य, व्यकरणाचार्य
सनातन धर्म में कितने प्रकार के विवाहों के बारे में वर्णन किया गया है ?
अर्थात् विवाह आठ प्रकार के होते हैं। ब्रह्म, दैव,आर्ष, प्रजापत्य, आसुर, गान्धर्व, राक्षस एवं पैशाच। जिन्हें निम्न रूप में परिभाषित किया गया है-
१ ब्रह्म विवाह - वर एवं कन्या दोनो यथावत् ब्रह्मचर्य से पूर्ण विद्वान एवं सुशील हो, उनका परस्पर प्रसन्नता से विवाह होना ब्रह्म विवाह कहलाता है। गार्गी-याज्ञवल्क्य , राम-सीता, आदि का विवाह इसी प्रकार का है।
२ दैव विवाह - विस्तृत यज्ञ करने मे ऋत्विक् कर्म करते हुए जमाता को अलंकार युक्त कन्या का देना दैव विवाह कहलाता है। ( अविवाहित एवं ब्रह्मचारी यज्ञकर्ता को कन्या भेंट करना इस तरह का विवाह है)। किसी सेवा कार्य (विशेषतः धार्मिक अनुष्ठान) के मूल्य के रूप में अपनी कन्या को दान में दे देना 'दैव विवाह' कहलाता है।
३ आर्ष विवाह - वर से कुछ द्रव्य लेकर किया गया विवाह आर्ष विवाह कहलाता है। (मुस्लिमों का निकाह इस तरह का कहा जा सकता था लेकिन 4–4 निकाह गलत है, 1 निकाह की दृष्टि से आर्ष विवाह है)
४ प्रजापत्य विवाह - दोनों का विवाह धर्म की वृद्धि के लिये होना प्रजापत्य विवाह कहलाता है।( अर्जुन-सुभद्रा विवाह इसी दृष्टि का विवाह है)
५ आसुरी विवाह - कन्या को खरीद कर (आर्थिक रूप से) विवाह कर लेना 'आसुरी विवाह' कहलाता है।
६ गान्धर्व विवाह - अनियम, असमय, किसी कारण से वर-कन्या का इच्छापूर्वक परस्पर संयोग होना गान्धर्व विवाह है। (भीम-हिडिंबा का विवाह, आजकल का लिव-इन या कोर्ट मैरिज इसके अन्तर्गत आते है)
७ राक्षसी विवाह - कन्या की सहमति के बिना, उसका अपहरण करके जबरदस्ती या कपट से विवाह कर लेना 'राक्षस विवाह' कहलाता है।
८ पैशाच विवाह - कन्या की मदहोशी (गहन निद्रा, मानसिक दुर्बलता आदि) का लाभ उठा कर उससे शारीरिक सम्बंध बना लेना और उससे विवाह करना 'पैशाच विवाह' कहलाता है। इसमें कन्या के परिजनों की हत्या तक कर दी जाती हैं।
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