उद्देश्य
Sunday, 10 November 2024
रविवार को अक्षय नवमी हो तो क्या करें ? क्या आंवला का पूजन कर सकते हैं ?
Monday, 4 November 2024
भीष्मपंचक व्रत क्या है एवं कैसे करें ?
Saturday, 12 October 2024
दशहरा का संबंध न राम से है, न ही रावण से। यह विजयादशमी है। आइये आचार्य सोहन वेदपाठी से जानते हैं।
Monday, 16 September 2024
जीवित्पुत्रिका व्रत कथा
Friday, 13 September 2024
अस्ति कश्चिद् वाग्विशेषः ? (कोई विद्वान लगता है? )
Saturday, 7 September 2024
कलंक चतुर्थी के चंद्र दर्शन दोष से मुक्ति के उपाय
Thursday, 5 September 2024
हरितालिका तीज व्रत की विधि 6 सितम्बर 2024
Monday, 2 September 2024
सोमवती अमावस्या का महत्व एवं व्रत कथा आचार्य सोहन वेदपाठी, व्हाट्सएप्प 9463405098
Friday, 24 May 2024
पिता बेटी के ससुराल का अन्न कब ग्रहण कर सकता है? आचार्य सोहन वेदपाठी, संपर्क सूत्र - 9463405098
Tuesday, 30 April 2024
आठ प्रकार के विवाह कौन - कौन से है ?
Tuesday, 26 March 2024
स्वप्न तथा उसके संभावित फल जानें
स्वप्न तथा उनसे प्राप्त होने वाले संभावित फल
1- सांप दिखाई देना- धन लाभ
2- नदी देखना- सौभाग्य में वृद्धि
3- नाच-गाना देखना- अशुभ समाचार मिलने के योग
4- नीलगाय देखना- भौतिक सुखों की प्राप्ति
5- नेवला देखना- शत्रुभय से मुक्ति
6- पगड़ी देखना- मान-सम्मान में वृद्धि
7- पूजा होते हुए देखना- किसी योजना का लाभ मिलना
8- फकीर को देखना- अत्यधिक शुभ फल
9- गाय का बछड़ा देखना- कोई अच्छी घटना होना
10- वसंत ऋतु देखना- सौभाग्य में वृद्धि
11- स्वयं की बहन को देखना- परिजनों में प्रेम बढऩा
12- बिल्वपत्र देखना- धन-धान्य में वृद्धि
13- भाई को देखना- नए मित्र बनना
14- भीख मांगना- धन हानि होना
15- शहद देखना- जीवन में अनुकूलता
16- स्वयं की मृत्यु देखना- भयंकर रोग से मुक्ति
17- रुद्राक्ष देखना- शुभ समाचार मिलना
18- पैसा दिखाई- देना धन लाभ
19- स्वर्ग देखना- भौतिक सुखों में वृद्धि
20- पत्नी को देखना- दांपत्य में प्रेम बढ़ना
21- स्वस्तिक दिखाई देना- धन लाभ होना
22- हथकड़ी दिखाई देना- भविष्य में भारी संकट
23- मां सरस्वती के दर्शन- बुद्धि में वृद्धि
24- कबूतर दिखाई देना- रोग से छुटकारा
25- कोयल देखना- उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति
26- अजगर दिखाई देना- व्यापार में हानि
27- कौआ दिखाई देना- बुरी सूचना मिलना
28- छिपकली दिखाई देना- घर में चोरी होना
29- चिडिय़ा दिखाई देना- नौकरी में पदोन्नति
30- तोता दिखाई देना- सौभाग्य में वृद्धि
31- भोजन की थाली देखना- धनहानि के योग
32- इलाइची देखना- मान-सम्मान की प्राप्ति
33- खाली थाली देखना- धन प्राप्ति के योग
34- गुड़ खाते हुए देखना- अच्छा समय आने के संकेत
35- शेर दिखाई देना- शत्रुओं पर विजय
36- हाथी दिखाई देना- ऐेश्वर्य की प्राप्ति
37- कन्या को घर में आते देखना- मां लक्ष्मी की कृपा मिलना
38- सफेद बिल्ली देखना- धन की हानि
39- दूध देती भैंस देखना- उत्तम अन्न लाभ के योग
40- चोंच वाला पक्षी देखना- व्यवसाय में लाभ
41- स्वयं को दिवालिया घोषित करना- व्यवसाय चौपट होना
42- चिडिय़ा को रोते देखता- धन-संपत्ति नष्ट होना
43- चावल देखना- किसी से शत्रुता समाप्त होना
44- चांदी देखना- धन लाभ होना
45- दलदल देखना- चिंताएं बढऩा
46- कैंची देखना- घर में कलह होना
47- सुपारी देखना- रोग से मुक्ति
48- लाठी देखना- यश बढऩा
49- खाली बैलगाड़ी देखना- नुकसान होना
50- खेत में पके गेहूं देखना- धन लाभ होना
51- किसी रिश्तेदार को देखना- उत्तम समय की शुरुआत
52- तारामंडल देखना- सौभाग्य की वृद्धि
53- ताश देखना- समस्या में वृद्धि
54- तीर दिखाई- देना लक्ष्य की ओर बढऩा
55- सूखी घास देखना- जीवन में समस्या
56- भगवान शिव को देखना- विपत्तियों का नाश
57- त्रिशूल देखना- शत्रुओं से मुक्ति
58- दंपत्ति को देखना- दांपत्य जीवन में अनुकूलता
59- शत्रु देखना- उत्तम धनलाभ
60- दूध देखना- आर्थिक उन्नति
61- धनवान व्यक्ति देखना- धन प्राप्ति के योग
62- दियासलाई जलाना- धन की प्राप्ति
63- सूखा जंगल देखना- परेशानी होना
64- मुर्दा देखना- बीमारी दूर होना
65- आभूषण देखना- कोई कार्य पूर्ण होना
66- जामुन खाना- कोई समस्या दूर होना
67- जुआ खेलना- व्यापार में लाभ
68- धन उधार देना- अत्यधिक धन की प्राप्ति
69- चंद्रमा देखना- सम्मान मिलना
70- चील देखना- शत्रुओं से हानि
71- फल-फूल खाना- धन लाभ होना
72- सोना मिलना- धन हानि होना
73- शरीर का कोई अंग कटा हुआ देखना- किसी परिजन की मृत्यु के
योग
74- कौआ देखना- किसी की मृत्यु का समाचार मिलना
75- धुआं देखना- व्यापार में हानि
76- चश्मा लगाना- ज्ञान में बढ़ोत्तरी
77- भूकंप देखना- संतान को कष्ट
78- रोटी खाना- धन लाभ और राजयोग
79- पेड़ से गिरता हुआ देखना किसी रोग से मृत्यु होना
80- श्मशान में शराब पीना- शीघ्र मृत्यु होना
81- रुई देखना- निरोग होने के योग
82- कुत्ता देखना- पुराने मित्र से मिलन
83- सफेद फूल देखना- किसी समस्या से छुटकारा
84- उल्लू देखना- धन हानि होना
85- सफेद सांप काटना- धन प्राप्ति
86- लाल फूल देखना- भाग्य चमकना
87- नदी का पानी पीना- सरकार से लाभ
88- धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाना- यश में वृद्धि व पदोन्नति
89- कोयला देखना- व्यर्थ विवाद में फंसना
90- जमीन पर बिस्तर लगाना- दीर्घायु और सुख में वृद्धि
91- घर बनाना- प्रसिद्धि मिलना
92- घोड़ा देखना- संकट दूर होना
93- घास का मैदान देखना- धन लाभ के योग
94- दीवार में कील ठोकना- किसी बुजुर्ग व्यक्ति से लाभ
95- दीवार देखना- सम्मान बढऩा
96- बाजार देखना- दरिद्रता दूर होना
97- मृत व्यक्ति को पुकारना- विपत्ति एवं दुख मिलना
98- मृत व्यक्ति से बात करना- मनचाही इच्छा पूरी होना
99- मोती देखना- पुत्री प्राप्ति
100- लोमड़ी देखना- किसी घनिष्ट व्यक्ति से धोखा मिलना
101- गुरु दिखाई देना- सफलता मिलना
102- गोबर देखना- पशुओं के व्यापार में लाभ
103- देवी के दर्शन करना- रोग से मुक्ति
104- चाबुक दिखाई देना- झगड़ा होना
105- चुनरी दिखाई देना- सौभाग्य की प्राप्ति
106- छुरी दिखना- संकट से मुक्ति
107- बालक दिखाई देना- संतान की वृद्धि
108- बाढ़ देखना- व्यापार में हानि
109- जाल देखना- मुकद्में में हानि
110- जेब काटना- व्यापार में घाटा
111- चेक लिखकर देना- विरासत में धन मिलना
112- कुएं में पानी देखना- धन लाभ
113- आकाश देखना- पुत्र प्राप्ति
114- अस्त्र-शस्त्र देखना- मुकद्में में हार
115- इंद्रधनुष देखना- उत्तम स्वास्थ्य
116- कब्रिस्तान देखना- समाज में प्रतिष्ठा
117- कमल का फूल देखना- रोग से छुटकारा
118- सुंदर स्त्री देखना- प्रेम में सफलता
119- चूड़ी देखना- सौभाग्य में वृद्धि
120- कुआं देखना- सम्मान बढऩा
121- अनार देखना- धन प्राप्ति के योग
122- गड़ा धन दिखाना- अचानक धन लाभ
123- सूखा अन्न खाना- परेशानी बढऩा
124- अर्थी देखना- बीमारी से छुटकारा
125- झरना देखना- दु:खों का अंत होना
126- बिजली गिरना- संकट में फंसना
127- चादर देखना- बदनामी के योग
128- जलता हुआ दीया देखना- आयु में वृद्धि
129- धूप देखना- पदोन्नति और धनलाभ
130- रत्न देखना- व्यय एवं दु:ख 131- चंदन देखना- शुभ समाचार
मिलना
132- जटाधारी साधु देखना- अच्छे समय की शुरुआत
133- स्वयं की मां को देखना- सम्मान की प्राप्ति
134- फूलमाला दिखाई देना- निंदा होना
135- जुगनू देखना- बुरे समय की शुरुआत
136- टिड्डी दल देखना- व्यापार में हानि
137- डाकघर देखना- व्यापार में उन्नति
138- डॉक्टर को देखना- स्वास्थ्य संबंधी समस्या
139- ढोल दिखाई देना- किसी दुर्घटना की आशंका
140- मंदिर देखना- धार्मिक कार्य में सहयोग करना
141- तपस्वी दिखाई- देना दान करना
142- तर्पण करते हुए देखना- परिवार में किसी बुर्जुग की मृत्यु
143- डाकिया देखना- दूर के रिश्तेदार से मिलना
144- तमाचा मारना- शत्रु पर विजय
145- उत्सव मनाते हुए देखना- शोक होना
146- दवात दिखाई देना- धन आगमन
147- नक्शा देखना- किसी योजना में सफलता
148- नमक देखना- स्वास्थ्य में लाभ
149- कोर्ट-कचहरी देखना- विवाद में पडऩा
150- पगडंडी देखना- समस्याओं का निराकरण
151- सीना या आंख खुजाना- धन लाभ
Wednesday, 13 March 2024
योगिनी दशा क्या होती है एवं कैसे निकालें ?
जिस नक्षत्र में जन्म हों, अश्विनी से गिनकर प्राप्त संख्या में तीन जोडकर आठ से भाग देने से जो शेष बचे उस शेष संख्या के तुल्य-संख्यक मंगला आदि योगिनी दशा समझें, उसी पर से मनुष्य का स्पष्ट शुभाशुभ फल होता हैं।
योगिनी दशाओं के नाम-:
मंगला पिंगला धान्या भ्रामरी भद्रिका तथा।
उल्का सिद्धा संकटा च एतासां नामवत्फलम्।।
१, मंगला, २, पिंगला, ३, धान्या, ४, भ्रामरी, ५, भद्रिका, ६, उल्का, ७, सिद्धा और ८, संकटा यह आठो योगिनी हैं। इनके नामवत् शुभाशुभ फल जानना चाहिए अर्थात् मंगला, धान्या, भद्रिका एवं सिद्धा इन चार विषम संख्यक योगिनियों की दशायें शुभ होती हैं और शेष चार सम संख्यक योगिनियों की दशायें अशुभ होती हैं।
योगिनी दशा वर्ष संख्या तथा अन्तर्दशा साधन-:
एकं द्वौ गुणवेदवाणरससप्ताष्टांकसंख्याः क्रमात्
स्वीयस्वीयदशा विपाकसमये ज्ञेयं शुभं वाऽशुभम्।
षट्त्रिंशैर्विभजेद्दिनीकृतमथैकद्वित्रिवेदेषुषट्
सप्ताष्टघ्नदशा भवेयुरिति ता एवं दशान्तर्दशाः।।
उक्त मंगला आदि आठ योगिनियों के क्रम से १,२,३,४,५,६,७,८ ये दशा वर्षमान हैं, इसी के अनुसार अपनी-अपनी दशा में उक्त योगिनियों के शुभ या अशुभ फल समझें। दशामान को दिनात्मक बनाकर पृथक् - पृथक् दशावर्ष संख्या से गुणाकर गुणनफल में ३६ के भाग देनें से लब्धि दिनादि अन्तर्दशा होती हैं।
ज्योतिष सीखने या जानकारी के लिये आप मुझसे संपर्क करें। आचार्य सोहन वेदपाठी, लुधियाना व्हाट्सएप्प 9463405098 पर संपर्क करें।
उदाहरण-:१ किसी का जन्म नक्षत्र हस्त हैं तो अश्विनी से उसकी संख्या १३ में ३ जोडने से १६ हुई इसमें ८ के भाग से शेष शून्य हुआ, अर्थात् आठ ही शेष बचा, इसलिए मंगला आदि क्रम से आठवीं संकटा की दशा में जन्म हुआ।
उदाहरण-: २ किसी का जन्म नक्षत्र आर्द्रा हैं तो अश्विनी से आर्द्रा की संख्या ६ में ३ जोडने से ९ हुई, इसमें आठ के भाग से १ शेष बचा इसलिए मंगला की दशा में जन्म हुआ, अर्थात् आर्द्रा से जन्म नक्षत्र तक जो संख्या हो उसमें ८ से भाग देने से शेष तुल्य संख्यक मंगला आदि योगिनी दशा में जन्म जानें। इस प्रकार आर्द्रा से रेवती तक २२ नक्षत्रों में मंगलादिओं की दशा होगी, अश्विनी से मृगशिर्ष तक ५ नक्षत्रों में भ्रामरी से संकटा तक पाँच योगिनिओं की दशा होगी।
अंतर्दशा साधन के लिये एक अन्य सूत्र -
महादशा और अन्तर्दशा के वर्षों को गुना करके गुणनफल को १० से गुणा करने पर अंतर्दशा के दिनादि प्राप्त होंगे। ३० से ज्यादा होने पर ३० का भाग देकर महीना एवं शेष को दिन समझें।
Saturday, 24 February 2024
घाघ के वचन अनुसार आहार एवं कृषि विज्ञान
Wednesday, 14 February 2024
वसन्तपंचमी 14 फरवरी 2024
14 फरवरी 2024 को माघ शुक्ल पंचमी पूर्वाह्न व्यापिनी होने से पूरे भारत में वसंतपंचमी का पावन त्यौहार मनाया जायेगा। सिद्धपीठ दण्डी स्वामी मंदिर, लुधियाना से आचार्य सोहन वेदपाठी ने बताया कि वसन्त पञ्चमी का दिन माँ सरस्वती को समर्पित है और इस दिन माँ सरस्वती की पूजा-अर्चना की जाती है। माता सरस्वती को ज्ञान, सँगीत, कला, विज्ञान और शिल्प-कला की देवी माना जाता है। इस दिन को श्री पञ्चमी और सरस्वती पूजा के नाम से भी जाना जाता है।
भक्त लोग, ज्ञान प्राप्ति और सुस्ती, आलस्य एवं अज्ञानता से छुटकारा पाने के लिये, आज के दिन देवी सरस्वती की उपासना करते हैं। कुछ प्रदेशों में आज के दिन शिशुओं को पहला अक्षर लिखना सिखाया जाता है। दूसरे शब्दों में वसन्त पञ्चमी का दिन विद्या आरम्भ या अक्षर अभ्यास के लिये काफी शुभ माना जाता है। इसीलिये माता-पिता आज के दिन शिशु को माता सरस्वती के आशीर्वाद के साथ विद्या आरम्भ कराते हैं। सभी विद्यालयों में आज के दिन सुबह के समय माता सरस्वती की पूजा की जाती है। वसन्त पञ्चमी वाले दिन सरस्वती पूजा विद्यार्थी अपने घर में ही अपने पुस्तकों को साफ-सफाई करके स्वच्छ वस्त्र पर रखकर माता सरस्वती का ध्यान करते हुये धूप-दीप, नैवेद्यादि से पूजन करें।
यह स्वयंसिद्ध मुहूर्तों में शामिल है। इस दिन कोई भी शुभ कार्य किया जा सकता है। विवाहादि संस्कारों को छोड़कर।
आइये इसके बारे में कुछ खास जानकारी आपके साथ सांझा करता हूँ।
वसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। हर दिन नयी उमंग से सूर्योदय होता है और नयी चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है। यों तो माघ का यह पूरा मास ही उत्साह देने वाला है, पर वसंत पंचमी (माघ शुक्ल पंचमी) का पर्व भारतीय जनजीवन को अनेक तरह से प्रभावित करता है। प्राचीनकाल से इसे ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है। जो शिक्षाविद भारत और भारतीयता से प्रेम करते हैं, वे इस दिन मां शारदा की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं। कलाकारों का तो कहना ही क्या? जो महत्व सैनिकों के लिए अपने शस्त्रों और विजयादशमी का है, जो विद्वानों के लिए अपनी पुस्तकों और व्यास पूर्णिमा का है, जो व्यापारियों के लिए अपने तराजू, बाट, बहीखातों और दीपावली का है, वही महत्व कलाकारों के लिए वसंत पंचमी का है। चाहे वे कवि हों या लेखक, गायक हों या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सब दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की वंदना से करते हैं।
ऐतिहासिक महत्व -
वसंत पंचमी का दिन हमें पृथ्वीराज चौहान की भी याद दिलाता है। उन्होंने विदेशी हमलावर मोहम्मद गौरी को 16 बार पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया, पर जब सत्रहवीं बार वे पराजित हुए, तो मोहम्मद गौरी ने उन्हें नहीं छोड़ा। वह उन्हें अपने साथ अफगानिस्तानले गया और उनकी आंखें फोड़ दीं।
इसके बाद की घटना तो जगप्रसिद्ध ही है। गौरी ने मृत्युदंड देने से पूर्व उनके शब्दभेदी बाण का कमाल देखना चाहा। पृथ्वीराज के साथी कवि चंदबरदाई के परामर्श पर गौरी ने ऊंचे स्थान पर बैठकर तवे पर चोट मारकर संकेत किया। तभी चंदबरदाई ने पृथ्वीराज को संदेश दिया।
चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान ॥
पृथ्वीराज चौहान ने इस बार भूल नहीं की। उन्होंने तवे पर हुई चोट और चंदबरदाई के संकेत से अनुमान लगाकर जो बाण मारा, वह गौरी के सीने में जा धंसा। इसके बाद चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने भी एक दूसरे के पेट में छुरा भौंककर आत्मबलिदान दे दिया। (1192 ई) यह घटना भी वसंत पंचमी वाले दिन ही हुई थी।
वसंत पंचमी का लाहौर निवासी वीर हकीकत से भी गहरा संबंध है। एक दिन जब मुल्ला जी किसी काम से विद्यालय छोड़कर चले गये, तो सब बच्चे खेलने लगे, पर वह पढ़ता रहा। जब अन्य बच्चों ने उसे छेड़ा, तो दुर्गा मां की सौगंध दी। मुस्लिम बालकों ने दुर्गा मां की हंसी उड़ाई। हकीकत ने कहा कि यदि में तुम्हारी बीबी फातिमा के बारे में कुछ कहूं, तो तुम्हें कैसा लगेगा?
बस फिर क्या था, मुल्ला जी के आते ही उन शरारती छात्रों ने शिकायत कर दी कि इसने बीबी फातिमा को गाली दी है। फिर तो बात बढ़ते हुए काजी तक जा पहुंची। मुस्लिम शासन में वही निर्णय हुआ, जिसकी अपेक्षा थी। आदेश हो गया कि या तो हकीकत मुसलमान बन जाये, अन्यथा उसे मृत्युदंड दिया जायेगा। हकीकत ने यह स्वीकार नहीं किया। परिणामत: उसे तलवार के घाट उतारने का फरमान जारी हो गया।
कहते हैं उसके भोले मुख को देखकर जल्लाद के हाथ से तलवार गिर गयी। हकीकत ने तलवार उसके हाथ में दी और कहा कि जब मैं बच्चा होकर अपने धर्म का पालन कर रहा हूं, तो तुम बड़े होकर अपने धर्म से क्यों विमुख हो रहे हो? इस पर जल्लाद ने दिल मजबूत कर तलवार चला दी, पर उस वीर का शीश धरती पर नहीं गिरा। वह आकाशमार्ग से सीधा स्वर्ग चला गया। यह घटना वसंत पंचमी (23.2.1734) को ही हुई थी। पाकिस्तान यद्यपि मुस्लिम देश है, पर हकीकत के आकाशगामी शीश की याद में वहां वसंत पंचमी पर पतंगें उड़ाई जाती है। हकीकत लाहौर का निवासी था। अत: पतंगबाजी का सर्वाधिक जोर लाहौर में रहता है।
वसंत पंचमी हमें गुरू रामसिंह कूका की भी याद दिलाती है। उनका जन्म 1816 ई. में वसंत पंचमी पर लुधियाना के भैणी ग्राम में हुआ था। कुछ समय वे रणजीत सिंह की सेना में रहे, फिर घर आकर खेतीबाड़ी में लग गये, पर आध्यात्मिक प्रवृत्ति होने के कारण इनके प्रवचन सुनने लोग आने लगे। धीरे-धीरे इनके शिष्यों का एक अलग पंथ ही बन गया, जो कूका पंथ कहलाया।
गुरू रामसिंह गोरक्षा, स्वदेशी, नारी उध्दार, अंतरजातीय विवाह, सामूहिक विवाह आदि पर बहुत जोर देते थे। उन्होंने भी सर्वप्रथम अंग्रेजी शासन का बहिश्कार कर अपनी स्वतंत्र डाक और प्रशासन व्यवस्था चलायी थी। प्रतिवर्ष मकर संक्रांति पर भैणी गांव में मेला लगता था। 1872 में मेले में आते समय उनके एक शिष्य को मुसलमानों ने घेर लिया। उन्होंने उसे पीटा और गोवध कर उसके मुंह में गोमांस ठूंस दिया। यह सुनकर गुरू रामसिंह के शिष्य भड़क गये। उन्होंने उस गांव पर हमला बोल दिया, पर दूसरी ओर से अंग्रेज सेना आ गयी। अत: युध्द का पासा पलट गया।
इस संघर्ष में अनेक कूका वीर शहीद हुए और 68 पकड़ लिये गये। इनमें से 50 को सत्रह जनवरी 1872 को मलेरकोटलामें तोप के सामने खड़ाकर उड़ा दिया गया। शेष 18 को अगले दिन फांसी दी गयी। दो दिन बाद गुरू रामसिंह को भी पकड़कर बर्मा की मांडले जेल में भेज दिया गया। 14 साल तक वहां कठोर अत्याचार सहकर 1885 ई. में उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया।
नक्षत्र ज्योतिष सीखने वाले व्हाट्सएप्प पर संपर्क करें wa.me/+919463405098
Tuesday, 6 February 2024
षट्तिला एकादशी व्रत कथा एवं स्नान विधि जानने के लिये लिंक पर क्लिक करें।
आज 6 फरवरी 2024 को षट्तिला एकादशी का व्रत है।
आज के दिन 6 प्रकार से तिल का प्रयोग करना चाहिये।
पारण का समय - इस व्रत का पारण का समय कल 7 फरवरी को सूर्योदय से 8:41 AM तक के मध्य गाय के दूध से पारण करें।
हे अर्जुन! अब मैं माघ मास के कृष्ण पक्ष की षट्तिला एकादशी व्रत की कथा सुनाता हूँ-
एक बार दालभ्य ऋषि ने पुलस्त्य ऋषि से पूछा- 'हे ऋषि श्रेष्ठ! मनुष्य मृत्युलोक में ब्रह्महत्या आदि महापाप करते हैं और दूसरे के धन की चोरी तथा दूसरे की उन्तति देखकर ईर्ष्या आदि करते हैं, ऐसे महान पाप मनुष्य क्रोध, ईर्ष्या, आवेग और मूर्खतावश करते हैं और बाद में शोक करते हैं कि हाय! यह हमने क्या किया! हे महामुनि! ऐसे मनुष्यों को नरक से बचाने का क्या उपाय है? कोई ऐसा उपाय बताने की कृपा करें, जिससे ऐसे मनुष्यों को नरक से बचाया जा सके अर्थात उन्हें नरक की प्राप्ति न हो। ऐसा कौन-सा दान-पुण्य है, जिसके प्रभाव से नरक की यातना से बचा जा सकता है, इन सभी प्रश्नों का हल आप कृपापूर्वक बताइए?'
दालभ्य ऋषि की बात सुन पुलत्स्य ऋषि ने कहा- 'हे मुनि श्रेष्ठ! आपने मुझसे अत्यंत गूढ़ प्रश्न पूछा है। इससे संसार में मनुष्यों का बहुत लाभ होगा। जिस रहस्य को इंद्र आदि देवता भी नहीं जानते, वह रहस्य मैं आपको अवश्य ही बताऊंगा। माघ मास आने पर मनुष्य को स्नान आदि से शुद्ध रहना चाहिए और इंद्रियों को वश में करके तथा काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या तथा अहंकार आदि से सर्वथा बचना चाहिए।
पुष्य नक्षत्र में गोबर, कपास, तिल मिलाकर उपले बनाने चाहिए। इन उपलों से १०८ बार हवन करना चाहिए।
जिस दिन मूल नक्षत्र और एकादशी तिथि हो, तब अच्छे पुण्य देने वाले नियमों को ग्रहण करना चाहिए। स्नानादि नित्य कर्म से देवों के देव भगवान श्रीहरि का पूजन व कीर्तन करना चाहिए।
एकादशी के दिन उपवास करें तथा रात को जागरण और हवन करें। उसके दूसरे दिन धूप, दीप, नैवेद्य से भगवान श्रीहरि की पूजा-अर्चना करें तथा खिचड़ी का भोग लगाएं। उस दिन श्रीविष्णु को पेठा, नारियल, सीताफल या सुपारी सहित अर्घ्य अवश्य देना चाहिए, तदुपरांत उनकी स्तुति करनी चाहिए- 'हे जगदीश्वर! आप निराश्रितों को शरण देने वाले हैं। आप संसार में डूबे हुए का उद्धार करने वाले हैं। हे कमलनयन! हे मधुसूदन! हे जगन्नाथ! हे पुण्डरीकाक्ष! आप लक्ष्मीजी सहित मेरे इस तुच्छ अर्घ्य को स्वीकार कीजिए।' इसके पश्चात ब्राह्मण को जल से भरा घड़ा और तिल दान करने चाहिए। यदि सम्भव हो तो ब्राह्मण को गऊ और तिल दान देना चाहिए। इस प्रकार मनुष्य जितने तिलों का दान करता है। वह उतने ही सहस्र वर्ष स्वर्ग में वास करता है।
आचार्य सोहन वेदपाठी ने बताया है कि तिल का छह प्रकार से इस प्रकार प्रयोग करें।
1.तिल स्नान
2. तिल की उबटन
3.तिलोदक
4.तिल का हवन
5.तिल का भोजन
6तिल का दान
इस प्रकार छः रूपों में तिलों का प्रयोग षट्तिला कहलाती है। इससे अनेक प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं। इतना कहकर पुलस्त्य ऋषि ने कहा- 'अब मैं एकादशी की कथा सुनाता हूँ-
एक बार नारद मुनि ने भगवान श्रीहरि से षटतिला एकादशी का माहात्म्य पूछा, वे बोले- 'हे प्रभु! आप मेरा प्रणाम स्वीकार करें। षटतिला एकादशी के उपवास का क्या पुण्य है? उसकी क्या कथा है, कृपा कर मुझसे कहिए।'
नारद की प्रार्थना सुन भगवान श्रीहरि ने कहा- 'हे नारद! मैं तुम्हें प्रत्यक्ष देखा सत्य वृत्तांत सुनाता हूँ, ध्यानपूर्वक श्रवण करो-
बहुत पहले मृत्युलोक में एक ब्राह्मणी रहती थी। वह सदा व्रत-उपवास किया करती थी। एक बार वह एक मास तक उपवास करती रही, इससे उसका शरीर बहुत कमजोर हो गया। वह अत्यंत बुद्धिमान थी। फिर उसने कभी भी देवताओं तथा ब्राह्मणों के निमित्त अन्नादि का दान नहीं किया। मैंने चिंतन किया कि इस ब्राह्मणी ने उपवास आदि से अपना शरीर तो पवित्र कर लिया है तथा इसको वैकुंठ लोक भी प्राप्त हो जाएगा, किंतु इसने कभी अन्नदान नहीं किया है, अन्न के बिना जीव की तृप्ति होना कठिन है। ऐसा चिंतन कर मैं मृत्युलोक में गया और उस ब्राह्मणी से अन्न की भिक्षा मांगी। इस पर उस ब्राह्मणी ने कहा-हे योगीराज! आप यहां किसलिए पधारे हैं? मैंने कहा- मुझे भिक्षा चाहिए। इस पर उसने मुझे एक मिट्टी का पिंड दे दिया। मैं उस पिंड को लेकर स्वर्ग लौट आया। कुछ समय व्यतीत होने पर वह ब्राह्मणी शरीर त्यागकर स्वर्ग आई। मिट्टी के पिंड के प्रभाव से उसे उस जगह एक आम वृक्ष सहित घर मिला, किंतु उसने उस घर को अन्य वस्तुओं से खाली पाया। वह घबराई हुई मेरे पास आई और बोली- 'हे प्रभु! मैंने अनेक व्रत आदि से आपका पूजन किया है, किंतु फिर भी मेरा घर वस्तुओं से रिक्त है, इसका क्या कारण है?'
मैंने कहा- 'तुम अपने घर जाओ और जब देव-स्त्रियां तुम्हें देखने आएं, तब तुम उनसे षटतिला एकादशी व्रत का माहात्म्य और उसका विधान पूछना, जब तक वह न बताएं, तब तक द्वार नहीं खोलना।'
प्रभु के ऐसे वचन सुन वह अपने घर गई और जब देव-स्त्रियां आईं और द्वार खोलने के लिए कहने लगीं, तब उस ब्राह्मणी ने कहा- 'यदि आप मुझे देखने आई हैं तो पहले मुझे षटतिला एकादशी का माहात्म्य बताएं।'
तब उनमें से एक देव-स्त्री ने कहा- 'यदि तुम्हारी यही इच्छा है तो ध्यानपूर्वक श्रवण करो- मैं तुमसे एकादशी व्रत और उसका माहात्म्य विधान सहित कहती हूं।'
जव उस देव-स्त्री ने षटतिला एकादशी का माहात्म्य सुना दिया, तब उस ब्राह्मणी ने द्वार खोल दिया। देव-स्त्रियों ने ब्राह्मणी को सब स्त्रियों से अलग पाया। उस ब्राह्मणी ने भी देव-स्त्रियों के कहे अनुसार षटतिला एकादशी का उपवास किया और उसके प्रभाव से उसका घर धन्य-धान्य से भर गया, अतः हे पार्थ! मनुष्यों को अज्ञान को त्यागकर षटतिला एकादशी का उपवास करना चाहिए। इस एकादशी व्रत के करने वाले को जन्म-जन्म की निरोगता प्राप्त हो जाती है। इस उपवास से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।"
कथा-सार
इस उपवास को करने से जहां हमें शारीरिक पवित्रता और निरोगता प्राप्त होती है, वहीं अन्न, तिल आदि दान करने से धन-धान्य में बढ़ोत्तरी होती है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि मनुष्य जो-जो और जैसा दान करता है, शरीर त्यागने के बाद उसे फल भी वैसा ही प्राप्त होता है, अतः धार्मिक कृत्यों के साथ-साथ हमें दान आदि अवश्य करना चाहिए। शास्त्रों में वर्णित है कि बिना दान किए कोई भी धार्मिक कार्य सम्पन्न नहीं होता।