Thursday, 13 January 2022

मकर संक्रन्ति 14 या 15 जनवरी 2022 ?

 मकर संक्रांति 14 या 15 जनवरी को ?

सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना ही मकर संक्रांति कहलाता है। इस दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाता है। शास्त्रों में उत्तरायण की अवधि को देवताओं का दिन और दक्षिणायन को देवताओं की रात कहा गया है। इस दिन स्नान, दान, तप, जप और अनुष्ठान का अत्यधिक महत्व है।

उत्तर भारत में प्रचलित दृक्पक्षीय पञ्चाङ्ग के अनुसार भगवान सूर्य मकर राशि में प्रवेश 14 जनवरी 2022 शुक्रवार को दोपहर में 02:29 पर होगा। अतः प्रातःकाल 8:05 के बाद से सायंकाल सूर्यास्त के पहले तक पुण्यकाल रहेगा । यह निर्णय जम्मू-कश्मीर , पंजाब, हरियाणा, हिमांचल, दिल्ली के लिये मान्य होगा।

काशी के महावीर पंचांग के अनुसार संक्रांति का पुण्यकाल 15 जनवरी को मनाया जायेगा। यह बिहार , उत्तरप्रदेश , उड़ीसा, मध्यप्रदेश के लिये होगा अन्यत्र तो 14 जनवरी को ही होगा।।

अतः निर्णयसिंधु एवं धर्मसिन्धु दोनों के  अनुसार प्रदोषकाल में या निशीथकाल में मकर की संक्रांति होने पर परदिन ही 40 घड़ी का पुण्यकाल होता है। एतद् अनुसार बिहार , उत्तरप्रदेश , उड़ीसा, मध्यप्रदेश के लिये संक्रांति का पुण्यकाल अगले दिन (15 जनवरी को )  11:41 तक ही संक्रांतिजन्य पुण्यकाल मनाया जायेगा। लेकिन खरमास की समाप्ति एवं संक्रांति तो 14 को ही माना जायेगा। जिस दिन राशि परिवर्तन होता है उसीदिन संक्रांति मानी जाती है।  

नोट: काशी से भिन्न सभी पंचांगों ( दृकपक्षीय) में 14 के दिन में ही राशि प्रवेश होने से 14 को ही पुण्यकाल भी मनाया जायेगा जो कि सर्वत्र पूरे भारत में मनाया जायेगा।

इस दिन तिल-गुड़ का क्या है महत्व....

सूर्य की उपासना- मकर संक्रांति के दिन सूर्य के एक राशि से दूसरे राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर हुआ परिवर्तन माना जाता है। मकर संक्रांति से दिन बढऩे लगता है और रात की अवधि कम होती जाती है। चूंकि सूर्य ही ऊर्जा का सबसे प्रमुख स्त्रोत है इसलिए हिंदू धर्म में मकर संक्रांति मनाने का विशेष महत्व है।

जरुर करें गंगा स्नान- ऐसी मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन गंगा, यमुना और सरस्वती के त्रिवेणी संगम, प्रयाग में सभी देवी-देवता अपना स्वरूप बदलकर स्नान के लिए आते हैं। इसलिए इस दिन गंगा स्नान करने से सभी कष्टों का निवारण हो जाता है।

तिल का महत्व- संक्रांति के दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं। मकर राशि के स्वामी शनि देव हैं, जो सूर्य देव के पुत्र होते हुए भी सूर्य से शत्रु भाव रखते हैं। इसलिए शनिदेव के घर में सूर्य की उपस्थिति के दौरान शनि उन्हें कष्ट न दें, इसलिए मकर संक्रांति पर तिल का दान किया जाता है।

तिल और गुड़ का सेवन- तिल में कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम तथा फॉस्फोरस पाया जाता है। इसमें विटामिन बी और सी की भी काफी मात्रा होती है। यह पाचक, पौष्टिक, स्वादिष्ट और स्वास्थ्य रक्षक है। गुड़ में भी अनेक प्रकार के खनिज पदार्थ होते हैं। इसमें कैल्शियम, आयरन और विटामिनों भरपूर मात्रा में होता है। गुड़ जीवन शक्ति बढ़ाता है। शारीरिक श्रम के बाद गुड़ खाने से थकावट दूर होती है और शक्ति मिलती है। गुड़ खाने से हृदय भी मजबूत बनता है और कोलेस्ट्रॉल घटता है। तिल व गुड़ मिलाकर खाने से शरीर पर सर्दी का असर कम होता है। यही वजह है कि मकर संक्रांति का पर्व जो कड़ाके की ठंड के वक्त जनवरी महीने में आता है, उसमें हमारे शरीर को गर्म रखने के इरादे से तिल और गुड़ के सेवन पर जोर दिया जाता है।

दान का महत्व- मकर संक्रांति के दिन ब्राह्मणों को अनाज, वस्त्र, ऊनी कपड़े, फल आदि दान करने से शारीरिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। कहते हैं कि इस दिन किया गया दान सौ गुना होकर प्राप्त होता है। मकर संक्रांति के दिन दान करने वाला व्यक्ति संपूर्ण भोगों को भोगकर मोक्ष को प्राप्त होता है।

पतंग उड़ाने का महत्व- मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने के पीछे कोई धार्मिक कारण नहीं है। संक्रांति पर जब सूर्य उत्तरायण होता है तब इसकी किरणें हमारे शरीर के लिए औषधि का काम करती है। पतंग उड़ाते समय हमारा शरीर सीधे सूर्य की किरणों के संपर्क में आ जाता है जिससे सर्दी में होने वाले रोग नष्ट हो जाते हैं। और हमारा शरीर स्वस्थ रहता है।


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