शिववास के विना कोई भी शिव अनुष्ठान नहीं करना चाहिये।
शिव वास देखने का सूत्र-
शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक तिथियों की कुल संख्या 30 होती है । इस तरह से कोई भी मुहूर्त देखने के लिए 1 से 30 तक की संख्या को ही लेना चाहिए ।।
तिथीं च द्विगुणी कृत्वा बाणै: संयोजयेत्तथा ।।
सप्तभिस्तु हरेद्भागं शेषाङ्के फलमादिशेत् ।।
शिववास फल:-
एकेन वासः कैलाशे द्वितीये गौरिसन्निधौ।
तृतीये वृषभारूढं सभायाञ्च चतुर्थके।।
पञ्चमे भोजने चैव क्रीडायाञ्च रसात्मके।
श्मशाने सप्तमे चैव शिववास: प्रकीर्त्तित:।।
कैलाशे च लभते सौख्यं गौर्याञ्च सुखसम्पदौ।
वृषभेs भीष्ट सिद्धि: स्यात् सभायां तापकारकौ।।
भोजने च भवेत्पीडा क्रीडायां कष्टमेव च।
श्मशाने च मरणं ज्ञेयं फलमेवं विचारयेत्।।
शिववासमविज्ञाय प्रवृत्त: शिवकर्मणि।
न तत्फलमवाप्नोति अनुष्ठानशतैरपि।।
AcharyaG.com की प्रस्तुति
शिववास का विचार
तिथि को दुगुना करके उसमे पांच और जोड़ देना चाहिए। कुल योग में, 7 का भाग देने पर, 1.2.3. शेष बचे तो इच्छा पूर्ति होता है,
शिववास अच्छा बनता है । बाकि बचे तो हानिकारक होता है, शुभ नहीं है ।।
इसे शेष के अनुसार इस प्रकार समझना चाहिये-
१.कैलाश अर्थात = सुख,
२. गौरिसंग = सुख एवं संपत्ति,
३.वृषभारूढ = अभीष्टसिध्दि,
४.सभा = सन्ताप,
५.भोजन = पीड़ा,
६.क्रीड़ा = कष्ट,
७.श्मशाने = मरण ।।
यह ध्यान रहे कि शिव-वास का विचार सकाम अनुष्ठान में ही जरूरी है।
निष्काम भाव से की जाने वाली अर्चना कभी भी हो सकती है..
ज्योतिर्लिंग-क्षेत्र, तीर्थस्थान, शिवरात्रि, प्रदोष एवं सावन के सोमवार आदि पर्वो में शिव-वास का विचार किये बिना भी रुद्राभिषेक किया जा सकता है।
अति उत्तम आचार्य जी
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