Wednesday, 26 August 2020

शिववास का विचार कैसे करें?

 शिववास के विना कोई भी शिव अनुष्ठान नहीं करना चाहिये।

शिव वास देखने का सूत्र- 

शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक तिथियों की कुल संख्या 30 होती है । इस तरह से कोई भी मुहूर्त देखने के लिए 1 से 30 तक की संख्या को ही लेना चाहिए ।।

तिथीं च द्विगुणी कृत्वा बाणै: संयोजयेत्तथा ।।

सप्तभिस्तु हरेद्भागं शेषाङ्के फलमादिशेत् ।।

शिववास फल:-

एकेन वासः कैलाशे द्वितीये गौरिसन्निधौ।

तृतीये वृषभारूढं सभायाञ्च चतुर्थके।।

पञ्चमे भोजने चैव क्रीडायाञ्च रसात्मके।

श्मशाने सप्तमे चैव शिववास: प्रकीर्त्तित:।।

कैलाशे च लभते सौख्यं गौर्याञ्च सुखसम्पदौ।

वृषभेs भीष्ट सिद्धि: स्यात् सभायां तापकारकौ।।

भोजने च भवेत्पीडा क्रीडायां कष्टमेव च।

श्मशाने च मरणं ज्ञेयं फलमेवं विचारयेत्।।

शिववासमविज्ञाय प्रवृत्त: शिवकर्मणि।

न तत्फलमवाप्नोति अनुष्ठानशतैरपि।।

AcharyaG.com की प्रस्तुति

शिववास का विचार 

तिथि को दुगुना करके उसमे पांच और जोड़ देना चाहिए। कुल योग में, 7 का भाग देने पर, 1.2.3. शेष बचे तो इच्छा पूर्ति होता है,

शिववास अच्छा बनता है । बाकि बचे तो हानिकारक होता है, शुभ नहीं है ।।

इसे शेष के अनुसार इस प्रकार समझना चाहिये-

१.कैलाश अर्थात = सुख,

२. गौरिसंग = सुख एवं संपत्ति, 

३.वृषभारूढ = अभीष्टसिध्दि,

४.सभा = सन्ताप,

५.भोजन = पीड़ा, 

६.क्रीड़ा = कष्ट, 

७.श्मशाने = मरण ।।

यह ध्यान रहे कि शिव-वास का विचार सकाम अनुष्ठान में ही जरूरी है।

निष्काम भाव से की जाने वाली अर्चना कभी भी हो सकती है..

ज्योतिर्लिंग-क्षेत्र, तीर्थस्थान, शिवरात्रि, प्रदोष एवं सावन के सोमवार आदि पर्वो में शिव-वास का विचार किये बिना भी रुद्राभिषेक किया जा सकता है।

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